आदिवासी पुरखा और संविधान सभा के सदस्य मरांग गोमके #जयपालसिंहमुंडा का योगदान भारत के आदिवासियों महत्वपूर्ण हैं। 1928 के एमस्टर्डम #ओलंपिक खेलों में भारत को पहली बार #हॉकी का #स्वर्ण_पदक दिलाने वाली टीम के #कप्तान जयपाल सिंह मुंडा ही थे।
आदिवासी परिवार में 3 जनवरी, 1903 को राँची जिले के खुंटी सब डिवीज़न में तपकरा गाँव में जन्मे जयपाल सिंह मुंडा ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की और उसी दौरान हॉकी की अपनी #प्रतिभा दिखाकर लोगों को चमत्कृत करना शुरू कर दिया था। इसी कारण उन्हें भारतीय हॉकी टीम की ओलंपिक में कप्तानी सौंपी गई थी।
मरांग गोमके यानी ग्रेट लीडर के नाम से लोकप्रिय हुए जयपाल सिंह मुंडा ने 1938-39 में अखिल भारतीय आदिवासी महासभा का गठन करके आदिवासियों के #शोषण के विरुद्ध राजनीतिक और सामाजिक लड़ाई लड़ने का निश्चय किया।
मध्य-पूर्वी भारत में आदिवासियों को शोषण से बचाने के लिए उन्होंने अलग आदिवासी राज्य बनाने की माँग की। उनके प्रस्तावित राज्य में वर्तमान #झारखंड, उड़ीसा का उत्तरी भाग, छत्तीसगढ़ और बंगाल के कुछ हिस्से शामिल थे।
हालाँकि करीब साठ साल बाद वर्ष 2000 में झारखंड राज्य के निर्माण के साथ उनकी माँग आंशिक रूप से पूरी हुई, लेकिन तब तक आदवासियों की संख्या राज्य में घटकर करीब 26 फीसदी बची, जबकि 1951 में ये आबादी 51 फीसदी हुआ करती थी।
जयपाल सिंह मुंडा आदिवासियों के लिए सबसे बड़े पैरोकार बनकर उभरे। संविधान सभा के लिए जब वे बिहार प्रांत से निर्वाचित हुए तो उन्होंने आदिवासियों की #भागीदारी सुनिश्चित कराने के लिए कड़े प्रयास किए।
अगस्त 1947 में जब अल्पसंख्यकों और वंचितों के अधिकारों के सवाल पर जयपाल सिंह मुंडा ने आदिवासियों के हक़ों की जोरदार पैरवी करते हुए कहा कि “आज़ादी की इस लड़ाई में हम सबको एक साथ चलना चाहिए। पिछले छह हजार साल से अगर इस देश में किसी का शोषण हुआ है तो वे आदिवासी ही हैं। उन्हें मैदानों से खदेड़कर जंगलों में धकेल दिया गया और हर तरह से प्रताड़ित किया गया, लेकिन अब जब भारत अपने इतिहास में एक नया अध्याय शुरू कर रहा है तो हमें अवसरों की समानता मिलनी चाहिए।”
जयपाल सिंह के सशक्त हस्तक्षेप के बाद संविधान सभा को आदिवासियों के बारे में सोचने पर मजबूर होना पड़ा। इसका नतीजा यह निकला कि 400 आदिवासी समूहों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया। उस समय इनकी आबादी करीब 7 फीसदी आँकी गई थी। इस लिहाज से उनके लिए नौकरियों और लोकसभा-विधानसभाओं में उनके लिए 7.5% आरक्षण सुनिश्चित किया जा सका।
इसके बाद आदिवासी हितों की रक्षा के लिए जयपाल सिंह मुंडा ने 1952 में झारखंड पार्टी का गठन किया। 1952 में झारखंड पार्टी को काफी सफलता मिली थी। उसके 3 सांसद और 23 विधायक जीते थे। स्वयं जयपाल सिंह लगातार चार लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में पहुँचे थे।
जयपाल सिंह मुंडा के ही कारण आदिवासियों को संविधान में कुछ विशिष्ट अधिकार मिल सके, हालाँकि, व्यवहार में उनका शोषण अब भी जारी हैं राज्यों में आदिवासियों के सामूहिक खात्मे का अभियान छिड़ा हुआ है। किसी को भी नक्सली बताकर गोली से उड़ा दिए जाने की परंपरा स्थापित हो चुकी है।
यह दुखद स्थिति खत्म करने के लिए एक बार फिर से जयपाल सिंह मुंडा की विचारधारा का अनुसरण किए जाने की जरूरत है। पूरे जीवन आदिवासी हितों के लिए लड़ते-लड़ते 20 मार्च 1970 को जयपाल सिंह मुंडा का निधन हो गया। दुर्भाग्य की बात है कि उसके बाद उन्हें विस्मृत कर दिया गया।
यह दुख की बात है कि आज जब दलितों और पिछड़ों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वालों को इतिहास के पन्नों से खोजकर निकालकर नया इतिहास लिखने की शुरुआत हो चुकी है, जबकि आदिवासियों के सबसे बड़े हितैषी जयपाल सिंह मुंडा को नई पीढ़ी के लोग जानते तक नहीं हैं। जब छोटे-छोटे राजनीतिक हितों के लिए लड़ने वाले राजनेताओं और धन के लिए खेलने वाले खिलाड़ियों तक को भारत रत्न से सम्मानित किया जा रहा है, ऐसे में जयपाल सिंह मुंडा जैसे बहुआयामी व्यक्ति के लिए भारत रत्न की माँग तक कहीं सुनाई नहीं देता।